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कृष्ण का अर्थ

05
May

2023

कृष्ण का अर्थ

कृष्ण का अर्थ___________________________कृष्ण शब्द का अर्थ होता है,केंद्र।कृष्ण शब्द का अर्थ होता है,जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश काकेंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जिस पर संसारीचीजें खिचती हों, जो केंद्रीय चुंबक का काम करे।प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है,क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्रहै। वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिंचतीहैं और आकृष्ट होती हैं। शरीर खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है, परिवार खिच कर उसके आस-पासनिर्मित होता र्है, समाज खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है, जगत खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्रहै, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आस-पास सबघटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है,तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है। वह जो बिंदु हैआत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है। और उसके बादसब चीजें उसके आस-पास निर्मित होनी शुरू होती हैं।उस कृष्ण-बिंदु के आस-पास क्रिस्टोलाइजेशन शुरुहोता है और व्यक्तित्व निर्मित होते हैं। इसलिए कृष्णका जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्मपात्र नहीं है,बल्कि व्यक्तिमात्र का जन्म है।अंधेरे का, कारागृह का, मृत्यु के भय का अर्थ है। लेकिनहमने कृष्ण के साथ उस क्यों जोड़ा होगा? मैं यह नहींकह रहा हूं कि जो कृष्ण की जिंदगी में घटना घटनीहोगी कारागृह में, वह नहीं घटी है। मैं यह भी नहीं कहरहा हूं कि जो बंधन में पैदा हुए होंगे, वह नही हुए हैं। मैंइतना कह रहा हूं कि वे बंधन में हुए हो या न हुए हों, वेकारागृह में जन्मे हों या न जन्में हो, लेकिन कृष्ण जैसाव्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण केव्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जोकि प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है।ध्यान रहे, महापुरुषों की कथाएं जन्म की हमेशा उलटीचलती हैं। साधारण आदमी के जीवन की कथा जन्म सेशुरू होती है और मृत्यु पर पूरी होती है। उसकी कथा मेंएक सिक्केंस होता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक। महापुरुषोंकी कथाएं फिर से रिट्रास्पेक्टिवली लिखी जातीहैं। महापुरुष पहचान में आते हैं बाद में। और उनकी जन्म कीकथाएं फिर बाद में लिखी जाती हैं। कृष्ण जैसाआदमी जब हमें दिखाई पड़ता है तब तो पैदा होने के बहुतबाद दिखाई पड़ता है। वर्षों बीत गए होते हैं उसे पैदाहुए। जब वह हमें दिखाई पड़ता है तब वह कोई चालीस-पचास साल की यात्रा कर चुका होता है। फिर इसमहिमावान, इस अद्भुत व्यक्ति के आस-पास कथानिर्मित होती है। फिर हम चुनाव करते हैं इसकीजिंदगी का। फिर हम रीइंटरप्रीट करते हैं। फिर से हमइसके पिछले जीवन में से घटनाएं चुनते हैं, घटनाओं का अर्थदेते हैं।इसलिए मैं आपसे कहूं कि महापुरुषों की जिंदगी कभीभी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मकहो जाती है। पीछे लौट कर निर्मित होती है। पीछेलौट कर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जातीहै और दूसरे अर्थ ले लेती है, जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभीभी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों कीजिदंगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है। हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारोंलोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएं होती चलीजाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसीव्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्थाहो जाते हैं। एक इंस्टीटयूशन हो जाते हैं। फिर वे समस्तजन्मों का सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र केजन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है।इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में मैं कोई मूल्य नहींमानता हूं। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह जाते। वेहमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड केप्रतीक हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्मदेखे है, वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।इसे ऐसा समझें। एक बहुत बड़े चित्रकार ने एक स्त्री काचित्र बनाया—एक बहुत सुंदर स्त्री का चित्र। लोगोंने उससे पूछा कि यह कौन स्त्री है, जिसके आधार पर इसचित्र को बनाया? उस चित्रकार ने कहाः यह किसीस्त्री का चित्र नहीं है। यह लाखों स्त्रियां जो मैंनेदेखी हैं, सबका सारभूत है। इसमें आंख किसी की है, इसमेंनाक किसी की, इसमें ओठ किसी के हैं, इसमें रंग किसीका है, इसमें बाल किसी के है, ऐसी स्त्री कही खोजनेसे नहीं मिलेगी, ऐसी स्त्री सिर्फ चित्रकार देखपाता है। और इसलिए चित्रकार की स्त्री पर बहुतभरोसा मत करना, उसको खोजने मत निकल जाना,क्योंकि जो मिलेगी वह नहीं, साधारण स्त्रीमिलेगी। इसलिए दुनिया बहुत कठिनाई में पड़ जाती हैक्योंकि हम जिन स्त्रियों को खोजने जाते हैं वे कहींहैं नहीं, वे चित्रकारों की स्त्रियां हैं, कवियों कीस्त्रियां हैं, वे हजारों स्त्रियों का सारभूत हैं। वे इत्रहैं हजारों स्त्रियों का। वे कहीं मिलने वाली नहीं है।वे हजारों स्त्रियां मिल-जुल कर एक हो गई हैं। वहहजारों स्त्रियों के बीच में से खोजी गई धुन है।तो जब कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा होता है, तो लाखोंजन्मों में जो पाया गया है, उस सबका सारभूत उसमेंसमा जाता है। इसलिए उसे व्यक्तिवाची मत मानना।वह व्यक्तिवाची है भी नहीं। इसलिए अगर उसे कोईइतिहास में खोज करने जाएगा तो शायद कहीं भी नपाए। कृष्ण मनुष्य मात्र के जन्म के प्रतीक बन जाते हैं—एकविशेष मनुष्यता के, जो इस देश में पैदा हुई; इस देश कीमनुष्यता ने जो अनुभव किया, वह उनमें समा जाता है।जीसस में समा जाता है किसी और देश का अनुभव, वहसब समाहित हो जाता है। हम अपने जन्म के साथ जन्मतेहैं और अपनी मृत्यु के साथ मर जाते हैं। कृष्ण के प्रतीक मेंजुड़ता ही चला जाता है। अनंत काल तक जुड़ता चलाजाता है। उस जोड़ में कभी कोई बाधा नहीं आती। हरयुग उसमें जुड़ेगा, हर युग उसमें समृद्धि करेगा, क्योंकि औरअनुभव इकट्ठे हो गए होंगे। और वह उस कलेक्टिव आर्चटाइप में जुड़ते चले जाएंगे।लेकिन मेरे लिए जो मतलब दिखाई पड़ता है, वह मैंने आपसेकहा। ये घटनाएं घट भी सकती हैं, ये घटनाएं न भी घटीहों। मेरे लिए घटनाओं का कोई मूल्य नहीं है। मेरे लिएमूल्य कृष्ण को समझने का है कि इस आदमी में ये घटनाएंकैसे हमने देखीं। और अगर इनको हम ठीक से देख सकें तो येघटनाएं हमें अपने जन्म में भी दिखाई पड़ सकती है वहअपनी मृत्यु तक पहुंचते-पहुंचते अपनी मृत्यु में भी कृष्ण कीमृत्यु के तालमेल को उपलब्ध हो सके।ओशोकृष्ण स्मृतिप्रवचन 6 से ...... कृष्ण का अर्थ___________________________कृष्ण शब्द का अर्थ होता है,केंद्र।कृष्ण शब्द का अर्थ होता है,जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश काकेंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जिस पर संसारीचीजें खिचती हों, जो केंद्रीय चुंबक का काम करे।प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है,क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्रहै। वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिंचतीहैं और आकृष्ट होती हैं। शरीर खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है, परिवार खिच कर उसके आस-पासनिर्मित होता र्है, समाज खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है, जगत खिंच कर उसके आस-पासनिर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्रहै, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आस-पास सबघटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है,तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है। वह जो बिंदु हैआत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है। और उसके बादसब चीजें उसके आस-पास निर्मित होनी शुरू होती हैं।उस कृष्ण-बिंदु के आस-पास क्रिस्टोलाइजेशन शुरुहोता है और व्यक्तित्व निर्मित होते हैं। इसलिए कृष्णका जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्मपात्र नहीं है,बल्कि व्यक्तिमात्र का जन्म है।अंधेरे का, कारागृह का, मृत्यु के भय का अर्थ है। लेकिनहमने कृष्ण के साथ उस क्यों जोड़ा होगा? मैं यह नहींकह रहा हूं कि जो कृष्ण की जिंदगी में घटना घटनीहोगी कारागृह में, वह नहीं घटी है। मैं यह भी नहीं कहरहा हूं कि जो बंधन में पैदा हुए होंगे, वह नही हुए हैं। मैंइतना कह रहा हूं कि वे बंधन में हुए हो या न हुए हों, वेकारागृह में जन्मे हों या न जन्में हो, लेकिन कृष्ण जैसाव्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण केव्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जोकि प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है।ध्यान रहे, महापुरुषों की कथाएं जन्म की हमेशा उलटीचलती हैं। साधारण आदमी के जीवन की कथा जन्म सेशुरू होती है और मृत्यु पर पूरी होती है। उसकी कथा मेंएक सिक्केंस होता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक। महापुरुषोंकी कथाएं फिर से रिट्रास्पेक्टिवली लिखी जातीहैं। महापुरुष पहचान में आते हैं बाद में। और उनकी जन्म कीकथाएं फिर बाद में लिखी जाती हैं। कृष्ण जैसाआदमी जब हमें दिखाई पड़ता है तब तो पैदा होने के बहुतबाद दिखाई पड़ता है। वर्षों बीत गए होते हैं उसे पैदाहुए। जब वह हमें दिखाई पड़ता है तब वह कोई चालीस-पचास साल की यात्रा कर चुका होता है। फिर इसमहिमावान, इस अद्भुत व्यक्ति के आस-पास कथानिर्मित होती है। फिर हम चुनाव करते हैं इसकीजिंदगी का। फिर हम रीइंटरप्रीट करते हैं। फिर से हमइसके पिछले जीवन में से घटनाएं चुनते हैं, घटनाओं का अर्थदेते हैं।इसलिए मैं आपसे कहूं कि महापुरुषों की जिंदगी कभीभी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मकहो जाती है। पीछे लौट कर निर्मित होती है। पीछेलौट कर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जातीहै और दूसरे अर्थ ले लेती है, जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभीभी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों कीजिदंगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है। हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारोंलोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएं होती चलीजाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसीव्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्थाहो जाते हैं। एक इंस्टीटयूशन हो जाते हैं। फिर वे समस्तजन्मों का सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र केजन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है।इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में मैं कोई मूल्य नहींमानता हूं। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह जाते। वेहमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड केप्रतीक हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्मदेखे है, वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।इसे ऐसा समझें। एक बहुत बड़े चित्रकार ने एक स्त्री काचित्र बनाया—एक बहुत सुंदर स्त्री का चित्र। लोगोंने उससे पूछा कि यह कौन स्त्री है, जिसके आधार पर इसचित्र को बनाया? उस चित्रकार ने कहाः यह किसीस्त्री का चित्र नहीं है। यह लाखों स्त्रियां जो मैंनेदेखी हैं, सबका सारभूत है। इसमें आंख किसी की है, इसमेंनाक किसी की, इसमें ओठ किसी के हैं, इसमें रंग किसीका है, इसमें बाल किसी के है, ऐसी स्त्री कही खोजनेसे नहीं मिलेगी, ऐसी स्त्री सिर्फ चित्रकार देखपाता है। और इसलिए चित्रकार की स्त्री पर बहुतभरोसा मत करना, उसको खोजने मत निकल जाना,क्योंकि जो मिलेगी वह नहीं, साधारण स्त्रीमिलेगी। इसलिए दुनिया बहुत कठिनाई में पड़ जाती हैक्योंकि हम जिन स्त्रियों को खोजने जाते हैं वे कहींहैं नहीं, वे चित्रकारों की स्त्रियां हैं, कवियों कीस्त्रियां हैं, वे हजारों स्त्रियों का सारभूत हैं। वे इत्रहैं हजारों स्त्रियों का। वे कहीं मिलने वाली नहीं है।वे हजारों स्त्रियां मिल-जुल कर एक हो गई हैं। वहहजारों स्त्रियों के बीच में से खोजी गई धुन है।तो जब कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा होता है, तो लाखोंजन्मों में जो पाया गया है, उस सबका सारभूत उसमेंसमा जाता है। इसलिए उसे व्यक्तिवाची मत मानना।वह व्यक्तिवाची है भी नहीं। इसलिए अगर उसे कोईइतिहास में खोज करने जाएगा तो शायद कहीं भी नपाए। कृष्ण मनुष्य मात्र के जन्म के प्रतीक बन जाते हैं—एकविशेष मनुष्यता के, जो इस देश में पैदा हुई; इस देश कीमनुष्यता ने जो अनुभव किया, वह उनमें समा जाता है।जीसस में समा जाता है किसी और देश का अनुभव, वहसब समाहित हो जाता है। हम अपने जन्म के साथ जन्मतेहैं और अपनी मृत्यु के साथ मर जाते हैं। कृष्ण के प्रतीक मेंजुड़ता ही चला जाता है। अनंत काल तक जुड़ता चलाजाता है। उस जोड़ में कभी कोई बाधा नहीं आती। हरयुग उसमें जुड़ेगा, हर युग उसमें समृद्धि करेगा, क्योंकि औरअनुभव इकट्ठे हो गए होंगे। और वह उस कलेक्टिव आर्चटाइप में जुड़ते चले जाएंगे।लेकिन मेरे लिए जो मतलब दिखाई पड़ता है, वह मैंने आपसेकहा। ये घटनाएं घट भी सकती हैं, ये घटनाएं न भी घटीहों। मेरे लिए घटनाओं का कोई मूल्य नहीं है। मेरे लिएमूल्य कृष्ण को समझने का है कि इस आदमी में ये घटनाएंकैसे हमने देखीं। और अगर इनको हम ठीक से देख सकें तो येघटनाएं हमें अपने जन्म में भी दिखाई पड़ सकती है वहअपनी मृत्यु तक पहुंचते-पहुंचते अपनी मृत्यु में भी कृष्ण कीमृत्यु के तालमेल को उपलब्ध हो सके।ओशोकृष्ण स्मृतिप्रवचन 6 से ......

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